दिनांक: 15 फेबरअरी 2015
आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय श्री मान नरेन्द्रा मोदी जी,
सर्व प्रथम मैं आपको नमस्कार करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि आप सकुशल हैं| यह पत्र, वैसे तो मैं सोशल मीडिया पे लिख रहा हूँ, पर मुझे आशा है कि यह आप तक भी पहुच जायगा| इस पत्र मे मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ जिन्हे करने कि आवश्यकता इसलिए उत्पन्न हुई है क्योंकि भ.ज.पा. लोक सभा में विजय के बाद से ही थोड़ी दिशाहीन जान पड़ी है और दिल्ली में मिली शर्मनाक हर के बाद भ.ज.पा. समर्थकों के मन का तनाव अपनी चरंसीमा पे पहुच गया है| हम सारे, जो भ.ज.पा को अपनी स्वाभाविक पार्टी मानते हैं और राष्ट्र हित की सोते-जागते कामना करते हैं, इस विषय पे चर्चा करते रहते हैं| इस पत्र को आप ऐसी सभी चर्चाओं का सार समझिए, यही इस पत्र का उद्देश्या है|
गणतंत्र में हार जीत जनता कि कसौटी का ही मापदंड है, इसकी अनदेखी करना बहुत ही हानिकारक हो सकता है| इसीलिए सबसे पहले हमे दिल्ली कि हार को सही से समझने का प्रयत्न करना चाहिए| इस हार के दो पहलू हैं: भ.ज.पा. की अंतरीय दुर्बलता (दिल्ली यूनिट में) और आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल कि शक्ति का आकलन| वोटेरों के धरातल से लेकर पार्टी के आलाकमान तक की राह में सत्य अक्सर भटक जाता है| मैं धरातल से आपको सूचित करना चाहूँगा कि दिल्ली के चुनावों में भ.ज.पा. पूर्ण रूप से हताश, छन्दित और सत्ता की लोभी जान पड़ी| साथ हि, केजरीवाल पर किए गये कटाक्ष अशिष्टता की मिसाल जान पड़ते थे और जिसे अँग्रेज़ी में हेलधी कॉंपिटेशन कहते हैं उसकी कमी साफ दिख रही थी| आपके समर्थकों कि ओर से एक प्रश्न यह उठता है कि क्या पार्टी को अपने उपर इतना आत्म-विश्वास न था कि उसे किरण बेदी को अंतिम घड़ी में मुख्य मंत्री उम्मीदवार घोषित करना पड़ा? या फिर शाज़िया इलमी जैसे नेताओं को अपनी टीम में लेने की आवशयक्ता पड़ी जिनका इतिहास बेहद संप्रदायिक और मौक़ापरस्त राजनीति रहा है? क्या पार्टी यह आशा करती है कि चुनाव के दिन स्त्रियों से छेड़ छाड़ के आरोपों को जनता सच मानेगी (मैं आरोप कि सत्यता पे नही अपितु आरोप के 'रिआक्शन' पे प्रश्न कर रहा हूँ)? ऐसे अनेक सवाल थे जिनके उत्तर भ.ज.पा. से ना मिलने के कारण वोटेरो ने अपना वोट आम आदमी पार्टी को समर्पित कर दिया| कुछ प्रश्न ऐसे भी हैं जिनके उत्तर दिल्ली की जनता हि नही अपितु पूरे देश कि जनता माँग रही है| उन्हे मैं पत्र के अंतिम हिस्से में संबोधित करूँगा| पर यहाँ पर मैं आपसे अपना पहला निवेदन करना चाहूँगा: भ.ज.पा. कि शक्ति है कि इसे 'पार्टी विद ए डिफरेन्स' माना जाता रहा है| यह छवि बनी रहे इसकेलिए यह आवश्यक है कि पार्टी में शाज़िया इलमी जैसे तत्त्वो को जगह न दी जाए, पार्टी अपनी शक्ति का उपयोग जनता की सेवा में करे न कि प्रतिद्वंदी के उपहास में और पार्टी में कभी भी नेताओं की कमी न हो| अगर पार्टी को लगता था कि दिल्ली में उन्हे एक ताकतवर नेता की ज़रूरत है और यह भार किरण बेदी ही संभाल सकती हैं तो उन्हे पार्टी मे ले आने का कार्य बहुत पहले ही कर ना चाहिए था| आपके समर्थक यह आशा करते हैं कि आने वाले दिनों में पार्टी शाज़िया इलमी कि सदस्यता रद्द करेगी और केजरीवाल सरकार को समर्थन देगी दिल्ली के आर्थिक विकास में| साथ हि पार्टी पूर्ण रूप से चौकन्नी रहे क्यूंकी अब जब केजरीवाल मुख्यमंत्री होंगे तो अलगाववादी, जिहादी और माओइस्ट संगठनों और उनसे हमदर्दी रखने वाले नेताओं और बाबुओं को अपनी देश द्रोही गतिविधियों को अंजाम देने की अधिक छूट मिलने की पूरी पूरी संभावना है| अगर दिल्ली की सुरक्षा आतंकी हमलों के खिलाफ और पुख़्ता कर दी जाए तो कोई हानि नही होगी| नारी सुरक्षा तो पहले से ही अक बड़ा मुद्दा रहा है, समाज और राष्ट्र विरोधी शक्तियों के और ताकतवर हो जाने से इस पर बहुत तीव्रता से काम करने की आवश्यकता है|
दिल्ली की हार का दूसरा पहलू है केजरीवाल की शक्ति का सही आकलन न कर पाना| कई बार हम परीक्षा मे प्रश्न पत्र से नही डरते, हम अनुत्तीर्ण होने से डरते हैं| इस परीक्षा के प्रश्न पत्र केजरीवाल हैं| यदि हमारी रणनीति उनसे निपटने कि होती तो हम कभी भी अनुत्तीरण न होते| अगर हम देखें, तो लोक सभा में केजरीवाल एक भी सीट नही निकाल पाए थे दिल्ली से| उसका कारण था की भ्रष्टाचार, यद्यपि एक बड़ा मुद्दा है, पर कोई प्रधानमंत्री बनने पर सिर्फ़ भ्रष्टाचार को हि अपने राज की नीव बना दे ऐसे जनता को सही नही जान पड़ा| परंतु विधान सभा चुनावों में भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा है और एक ऐसा मुद्दा है जिसपर मुख्यमंत्री अपना अधिकतम समय लगा सकता है| साथ हि केजरीवाल ने अपनी पुरानी ग़लतियों से सीख ली और अपने वादों में ऐसी चीज़ें भी शामिल करी जिनसे उनका कुछ 'विशन' जान पड़ा| अर्थात उन्होने अपने ईमानदार और भ्रष्टाचार विरोधी छवि को विकास का सहारा देके और पुख़्ता किया| ना भ.ज.पा. ने इस प्रकार का कोई भी अभ्यास किया और ना ही केजरीवाल के वादों को चुनौती दी| अगर हम ध्यान से देखे तो हमे पता लगेगा की केजरीवाल में एक शक्ति बहुत ही विकसित है और उनका अधिकतर 'स्टाइल' उस एक शक्ति के आगे पीछे टीका हुआ है: वह है अपने आपको कमज़ोर दिखा के जनता कि सहानुभूति बटोर लेना| जब वे अन्ना हज़ारे के साथ थे तब भी वह हमेशा अपना 'विकतिमैइसेशन' बड़े पैमाने पे जताते थे| उनतालीस दिन के उनके पहले कार्यकाल में उनकी रहस्यमयी खाँसी तो सभी को याद होगी| वह खाँसी भी नतीजों के एक या दो दिन बाद ही शुरू हो गयी थी जब, मुझे याद है, एक डाक्टर ने जनता तो समझने कि कोशिश की थी के वे बीमार है पर फिर भी काम कर रहे हैं| उसके बाद वो ख़ासी उनके त्यागपत्र तक ठीक नही हुई| पिछले एक वर्ष में दिल्ली की राजनीति का सबसे अधिक प्रयोग होने वाला पैंतरा था आ.आ.प. कि किसी फंक्शन में दुराचार| मैं मात्र यह प्रमुख बनाना चाहता हूँ कि केजरीवाल जनता का मनोभाव हमेशा अपनी ओर सहानुभूति वाला रखते हैं| वैसे तो यह जनता के साथ धोखाधड़ी ही है पर जबतक हम इसका सही तोड़ नही निकाल लेते तब तक जनता का वोट इन को ही मिलेगा| इस सहानुभूति के साथ ही इनकी रणनीति का दूसरा अभिन्न अंग है भ.ज.पा. और कॉंग्रेस को एक सा बताना| सत्य तो यह है कि खुद इनकी पार्टी और कॉंग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कॉंग्रेस, जनता दल युनाइटेड आदि सभी पार्टियाँ एक सी ही है| भ.ज.पा., जनता को विचारधारा का यह अंतर समझाने में नाकाम रही है| कई बार परिवर्तन होता नही है, लाना पड़ता है| आज से पहले कोई भी पार्टी अपने वोटेरों से रोटी, कपड़ा, मकान से अधिक बात नही करती थी| पर अब वोटर बदल रहे हैं और सब्सिडी और फ्री सुविधाओं से बढ़कर सोचने लगे हैं| ऐसे में बेहतर होगा अगर पार्टी अपने वोटेरों को लेफ्ट और राइट विंग का अंतर बताए| ना सही बड़ी रैलीयों में तो कम से कम कार्यकर्ता द्वारा छोटे मेल मिलाप के अवसरों मे ही सही| अगर ऐसा नही किया गया तो केजरीवाल अपनी कला से यह असत्य की भ.ज.पा. और कॉंग्रेस एक हैं, को सबके मान में भर देंगे और पिछले पच्चास सालों से जो लड़ाई हम वाम पंथियों से लड़ रहे हैं अपने देश को जीवित रखने के लिए उसका कोई भी श्रेय हमे नही मिलेगा और साथ ही यह लड़ाई और भी लंबी हो जाएगी| यहाँ मेरा यही सुझाव है की केजरीवाल को हम विचारधारा और काम में मात दें न कि भाषणों और न्यूज़ चैनेलों पे| अगर अब भ.ज.पा. को कहीं ध्यान देना चाहिए तो वो है हरियाणा और महाराष्ट्रा में है| दोनो ही राज्यों में हमारी सरकार कुछ ही समय पूर्व बनी है और इन सरकारों का प्रदर्शन केजरीवाल को अगली बार हराने में कारगर सिद्ध होगा| इसका कारण है की हरियाणा दिल्ली के बहुत निकट है और महाराष्ट्रा में मुंबई और पुणे जैसे शाहर स्थित हैं जहाँ समस्याओं का परिमाण दिल्ली जितना ही है भले ही समस्याएँ अलग हों| जहाँ तक रही बात केजरीवाल के व्यक्तित्व की तो हमे उनपर व्यक्तिगत आक्रमण ना करके उन्हे अकेला छोड़ देना चाहिए| उनके व्यक्तित्व की एक कमज़ोरी है जो अकेले छोड़े जाने पर उनसे ग़लती करा हि देगी और तब उसका राजनैतिक लाभ उठाया जा सकता है| दिल्ली मे मिली हार कोई ऐसी नही है जिससे पार्टी का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया हो| हाँ, कार्यकर्ता अवश्य थोड़े निराश होंगे पर उनका मनोबल आप बढ़ा सकते हैं (शायद आपको सबसे पहले यही करना चाहिए)| ज़्यादा बड़ी बात है कि हम इससे क्या सीखते हैं क्योंकि उसी के आधार पे ये निर्धारित होगा कि भारत का भविष्य क्या है|
पिछले कुछ महीनों में हिंदुत्व कि परिभाषा को अनेक नेताओं नो अपने भाषणों में बुरी तरह से चोटिल किया है| यह रूढ़िवादिता जो कभी भी हमारे धर्म का हिस्सा ना थी वही अब सबसे अधिक मुखर है| 'हिंदू परिवारों को चार-पाँच बच्चे करने चाहिए', 'लड़कियों को जीन्स नही पहननी चाहिए' आदि ऐसे बयान है जिनको सुन के हमारे और जिनको हम पराजित करना चाहते है उनके बीच का अंतर ख़त्म सा हो जाता है| मुझे यह कहने में कोई झिझक नही की जिहाद देश के लिए बड़ा ख़तरा है, पर अगर जिहाद को हराते हराते सम खुद ही जेहादी बन गये तो जेहाद जीत जाएगा| मेरा यह निवेदन है कि पार्टी में यह भावना उत्पन्न कर दें कि हिन्दुत्व और जेहाद में बहुत अंतर है और जो लोग इसे नहीं समझ पा रहे उन्हे कृपा करके पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाएँ| नारी सुरक्षा के विषय में हिंदुत्ववादी अधिक परेशान हैं और यह चिंता बेबुनियाद भी नही है| लव जिहाद एक सच्चाई है जिसे निकट से ही समझा जा सकता है, दूर से तस्वीर धुंधली हो जाती है| परंतु इसका यह अर्थ नही की औरतों को घूँघट में ढक दिया जाए और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता छीन ली जाए| यह तो कयर्ता मात्र है| क्या हिंदू अब इतने निर्बल हो गये हैं कि स्त्री रक्षा ना करके स्त्री दमन उन्हे भाने लगा है? अपनी स्त्री को उपर से नीचे तक तो कोई भी ढक सकता है और अधिकतर पुरुष इतने बलशाली भी होते हैं की भय का प्रयोग करके वे अपने घर की स्त्रियों से यह मनवा भी सकते हैं| पर असली वीरता तो इसमे है की वह अपने जीवन में आई हर नारी का आदर करें चाहे वह कैसी भी हो और उसका अपमान करने वाले को सही सबक सीखा दें चाहे ऐसा करने में उनकी जान ही क्यूँ ना चली जाए| अगर आप इस तर्क में यकीन रखते है कि देश के प्रधानमंत्री होने के नाते आप देश बदल सकते हैं तो आप को यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि यह छोटे-मोटे नेताओं के भाषण भी समाज पर अपनी छाप छोड़ते हैं| निवेदन है कि इन्हे हिन्दुत्व और उसके अर्थ को इतनी बड़ी क्षति पहुचाने से रोका जाए| इसी विषय में ढोंगी बाबओं की भी चर्चा करना ज़रूरी है| इनके कारण समाज को बहुत अधिक हानि हो रही है और दुर्बलता का विस्तार हो रहा है| धर्म के नाम पर होने वाली सारी छोटी-बड़ी अंधविश्वासी गतिविधियों पर रोक लगानी होगी तब ही हिंदू धर्म अपने भय से मुक्त हो सकेगा| इसी प्रकार से हम हिन्दुत्व की विजय कर सकते हैं| इसके साथ मैं यह भी कहना चाहूँगा की यद्यपि भ.ज.पा. हमारी स्वाभाविक पार्टी है क्यूंकी हम हिंदुत्ववादी हैं पर इसका यह अर्थ नही की हम हमेशा भ.ज.पा. का ही समर्थन करेंगे चाहे वह ग़लत काम ही क्यूँ ना कर रही हो| लोक सभा चुनावों के कुछ दिन पहेल एक मित्र ने मुझसे प्रश्न किया था कि अगर मोदी भी ग़लत कम करने लगे तो तुम कहाँ जाओगे? मैने उत्तर यही दिया था कि रहूँगा तो मैं भारत में ही पर विरोध अवश्य करूँगा| मुझे खेद है की चुनाव जीतने की इतने कम समय के पश्चात ही मुझे पार्टी कि गतिविधियों के विरोध में लिखना पढ़ रहा है|
मोदिजि, आपसे बहुत आशाएँ हैं| ऐसा कहकर मैं आपको 'इमोशनल ब्लेकमेल' नही कर रहा| मैं आपको यह भर बताना चाहता हूँ की हम आपके साथ हैं| जब दो प्रतिद्वंदी पार्टी के समर्थकों में बहस होती है तो हम यह नही देखते की सही क्या है और ग़लत क्या, हम आपका समर्थन करते हैं| पर बहस समाप्त होने पर हमे अपराध बोध होता है कि एक ग़लत बात का समर्थन कर आए| मनुष्य का अंतर्मन भी कितना सहेगा? मैं आपसे सच सच कहता हूँ कि व्यक्तिगत तौर पे मैं स्त्री पोशाक पर दिए गये कायरतापूर्ण बयान और शाज़िया इलमी को पार्टी में सदस्यता, इन दोनो ही बातों से मैं काफ़ी आहत था| अनेक लोगों से बात करके मालूम पड़ा कि वे भी आहत हैं| आज से कुछ वर्षों के बाद यह बात आपको चौका ना दे इसीलिए मैने यह पत्र लिखा है| मैं आशा करता हूँ कि आप इसे पढ़ेंगे और अपने राजनीतिक कौशल का प्रयोग करके हम सबके चिंता का समाधान करेंगे|
ईश्वर आपको लंबी आयु दे तथा हर व्यथा और दर्द से दूर रखे|
-मयंक पांडे
-भारतवर्ष का एक युवा नागरिक
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आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय श्री मान नरेन्द्रा मोदी जी,
सर्व प्रथम मैं आपको नमस्कार करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि आप सकुशल हैं| यह पत्र, वैसे तो मैं सोशल मीडिया पे लिख रहा हूँ, पर मुझे आशा है कि यह आप तक भी पहुच जायगा| इस पत्र मे मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ जिन्हे करने कि आवश्यकता इसलिए उत्पन्न हुई है क्योंकि भ.ज.पा. लोक सभा में विजय के बाद से ही थोड़ी दिशाहीन जान पड़ी है और दिल्ली में मिली शर्मनाक हर के बाद भ.ज.पा. समर्थकों के मन का तनाव अपनी चरंसीमा पे पहुच गया है| हम सारे, जो भ.ज.पा को अपनी स्वाभाविक पार्टी मानते हैं और राष्ट्र हित की सोते-जागते कामना करते हैं, इस विषय पे चर्चा करते रहते हैं| इस पत्र को आप ऐसी सभी चर्चाओं का सार समझिए, यही इस पत्र का उद्देश्या है|
गणतंत्र में हार जीत जनता कि कसौटी का ही मापदंड है, इसकी अनदेखी करना बहुत ही हानिकारक हो सकता है| इसीलिए सबसे पहले हमे दिल्ली कि हार को सही से समझने का प्रयत्न करना चाहिए| इस हार के दो पहलू हैं: भ.ज.पा. की अंतरीय दुर्बलता (दिल्ली यूनिट में) और आम आदमी पार्टी तथा अरविंद केजरीवाल कि शक्ति का आकलन| वोटेरों के धरातल से लेकर पार्टी के आलाकमान तक की राह में सत्य अक्सर भटक जाता है| मैं धरातल से आपको सूचित करना चाहूँगा कि दिल्ली के चुनावों में भ.ज.पा. पूर्ण रूप से हताश, छन्दित और सत्ता की लोभी जान पड़ी| साथ हि, केजरीवाल पर किए गये कटाक्ष अशिष्टता की मिसाल जान पड़ते थे और जिसे अँग्रेज़ी में हेलधी कॉंपिटेशन कहते हैं उसकी कमी साफ दिख रही थी| आपके समर्थकों कि ओर से एक प्रश्न यह उठता है कि क्या पार्टी को अपने उपर इतना आत्म-विश्वास न था कि उसे किरण बेदी को अंतिम घड़ी में मुख्य मंत्री उम्मीदवार घोषित करना पड़ा? या फिर शाज़िया इलमी जैसे नेताओं को अपनी टीम में लेने की आवशयक्ता पड़ी जिनका इतिहास बेहद संप्रदायिक और मौक़ापरस्त राजनीति रहा है? क्या पार्टी यह आशा करती है कि चुनाव के दिन स्त्रियों से छेड़ छाड़ के आरोपों को जनता सच मानेगी (मैं आरोप कि सत्यता पे नही अपितु आरोप के 'रिआक्शन' पे प्रश्न कर रहा हूँ)? ऐसे अनेक सवाल थे जिनके उत्तर भ.ज.पा. से ना मिलने के कारण वोटेरो ने अपना वोट आम आदमी पार्टी को समर्पित कर दिया| कुछ प्रश्न ऐसे भी हैं जिनके उत्तर दिल्ली की जनता हि नही अपितु पूरे देश कि जनता माँग रही है| उन्हे मैं पत्र के अंतिम हिस्से में संबोधित करूँगा| पर यहाँ पर मैं आपसे अपना पहला निवेदन करना चाहूँगा: भ.ज.पा. कि शक्ति है कि इसे 'पार्टी विद ए डिफरेन्स' माना जाता रहा है| यह छवि बनी रहे इसकेलिए यह आवश्यक है कि पार्टी में शाज़िया इलमी जैसे तत्त्वो को जगह न दी जाए, पार्टी अपनी शक्ति का उपयोग जनता की सेवा में करे न कि प्रतिद्वंदी के उपहास में और पार्टी में कभी भी नेताओं की कमी न हो| अगर पार्टी को लगता था कि दिल्ली में उन्हे एक ताकतवर नेता की ज़रूरत है और यह भार किरण बेदी ही संभाल सकती हैं तो उन्हे पार्टी मे ले आने का कार्य बहुत पहले ही कर ना चाहिए था| आपके समर्थक यह आशा करते हैं कि आने वाले दिनों में पार्टी शाज़िया इलमी कि सदस्यता रद्द करेगी और केजरीवाल सरकार को समर्थन देगी दिल्ली के आर्थिक विकास में| साथ हि पार्टी पूर्ण रूप से चौकन्नी रहे क्यूंकी अब जब केजरीवाल मुख्यमंत्री होंगे तो अलगाववादी, जिहादी और माओइस्ट संगठनों और उनसे हमदर्दी रखने वाले नेताओं और बाबुओं को अपनी देश द्रोही गतिविधियों को अंजाम देने की अधिक छूट मिलने की पूरी पूरी संभावना है| अगर दिल्ली की सुरक्षा आतंकी हमलों के खिलाफ और पुख़्ता कर दी जाए तो कोई हानि नही होगी| नारी सुरक्षा तो पहले से ही अक बड़ा मुद्दा रहा है, समाज और राष्ट्र विरोधी शक्तियों के और ताकतवर हो जाने से इस पर बहुत तीव्रता से काम करने की आवश्यकता है|
दिल्ली की हार का दूसरा पहलू है केजरीवाल की शक्ति का सही आकलन न कर पाना| कई बार हम परीक्षा मे प्रश्न पत्र से नही डरते, हम अनुत्तीर्ण होने से डरते हैं| इस परीक्षा के प्रश्न पत्र केजरीवाल हैं| यदि हमारी रणनीति उनसे निपटने कि होती तो हम कभी भी अनुत्तीरण न होते| अगर हम देखें, तो लोक सभा में केजरीवाल एक भी सीट नही निकाल पाए थे दिल्ली से| उसका कारण था की भ्रष्टाचार, यद्यपि एक बड़ा मुद्दा है, पर कोई प्रधानमंत्री बनने पर सिर्फ़ भ्रष्टाचार को हि अपने राज की नीव बना दे ऐसे जनता को सही नही जान पड़ा| परंतु विधान सभा चुनावों में भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा है और एक ऐसा मुद्दा है जिसपर मुख्यमंत्री अपना अधिकतम समय लगा सकता है| साथ हि केजरीवाल ने अपनी पुरानी ग़लतियों से सीख ली और अपने वादों में ऐसी चीज़ें भी शामिल करी जिनसे उनका कुछ 'विशन' जान पड़ा| अर्थात उन्होने अपने ईमानदार और भ्रष्टाचार विरोधी छवि को विकास का सहारा देके और पुख़्ता किया| ना भ.ज.पा. ने इस प्रकार का कोई भी अभ्यास किया और ना ही केजरीवाल के वादों को चुनौती दी| अगर हम ध्यान से देखे तो हमे पता लगेगा की केजरीवाल में एक शक्ति बहुत ही विकसित है और उनका अधिकतर 'स्टाइल' उस एक शक्ति के आगे पीछे टीका हुआ है: वह है अपने आपको कमज़ोर दिखा के जनता कि सहानुभूति बटोर लेना| जब वे अन्ना हज़ारे के साथ थे तब भी वह हमेशा अपना 'विकतिमैइसेशन' बड़े पैमाने पे जताते थे| उनतालीस दिन के उनके पहले कार्यकाल में उनकी रहस्यमयी खाँसी तो सभी को याद होगी| वह खाँसी भी नतीजों के एक या दो दिन बाद ही शुरू हो गयी थी जब, मुझे याद है, एक डाक्टर ने जनता तो समझने कि कोशिश की थी के वे बीमार है पर फिर भी काम कर रहे हैं| उसके बाद वो ख़ासी उनके त्यागपत्र तक ठीक नही हुई| पिछले एक वर्ष में दिल्ली की राजनीति का सबसे अधिक प्रयोग होने वाला पैंतरा था आ.आ.प. कि किसी फंक्शन में दुराचार| मैं मात्र यह प्रमुख बनाना चाहता हूँ कि केजरीवाल जनता का मनोभाव हमेशा अपनी ओर सहानुभूति वाला रखते हैं| वैसे तो यह जनता के साथ धोखाधड़ी ही है पर जबतक हम इसका सही तोड़ नही निकाल लेते तब तक जनता का वोट इन को ही मिलेगा| इस सहानुभूति के साथ ही इनकी रणनीति का दूसरा अभिन्न अंग है भ.ज.पा. और कॉंग्रेस को एक सा बताना| सत्य तो यह है कि खुद इनकी पार्टी और कॉंग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कॉंग्रेस, जनता दल युनाइटेड आदि सभी पार्टियाँ एक सी ही है| भ.ज.पा., जनता को विचारधारा का यह अंतर समझाने में नाकाम रही है| कई बार परिवर्तन होता नही है, लाना पड़ता है| आज से पहले कोई भी पार्टी अपने वोटेरों से रोटी, कपड़ा, मकान से अधिक बात नही करती थी| पर अब वोटर बदल रहे हैं और सब्सिडी और फ्री सुविधाओं से बढ़कर सोचने लगे हैं| ऐसे में बेहतर होगा अगर पार्टी अपने वोटेरों को लेफ्ट और राइट विंग का अंतर बताए| ना सही बड़ी रैलीयों में तो कम से कम कार्यकर्ता द्वारा छोटे मेल मिलाप के अवसरों मे ही सही| अगर ऐसा नही किया गया तो केजरीवाल अपनी कला से यह असत्य की भ.ज.पा. और कॉंग्रेस एक हैं, को सबके मान में भर देंगे और पिछले पच्चास सालों से जो लड़ाई हम वाम पंथियों से लड़ रहे हैं अपने देश को जीवित रखने के लिए उसका कोई भी श्रेय हमे नही मिलेगा और साथ ही यह लड़ाई और भी लंबी हो जाएगी| यहाँ मेरा यही सुझाव है की केजरीवाल को हम विचारधारा और काम में मात दें न कि भाषणों और न्यूज़ चैनेलों पे| अगर अब भ.ज.पा. को कहीं ध्यान देना चाहिए तो वो है हरियाणा और महाराष्ट्रा में है| दोनो ही राज्यों में हमारी सरकार कुछ ही समय पूर्व बनी है और इन सरकारों का प्रदर्शन केजरीवाल को अगली बार हराने में कारगर सिद्ध होगा| इसका कारण है की हरियाणा दिल्ली के बहुत निकट है और महाराष्ट्रा में मुंबई और पुणे जैसे शाहर स्थित हैं जहाँ समस्याओं का परिमाण दिल्ली जितना ही है भले ही समस्याएँ अलग हों| जहाँ तक रही बात केजरीवाल के व्यक्तित्व की तो हमे उनपर व्यक्तिगत आक्रमण ना करके उन्हे अकेला छोड़ देना चाहिए| उनके व्यक्तित्व की एक कमज़ोरी है जो अकेले छोड़े जाने पर उनसे ग़लती करा हि देगी और तब उसका राजनैतिक लाभ उठाया जा सकता है| दिल्ली मे मिली हार कोई ऐसी नही है जिससे पार्टी का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया हो| हाँ, कार्यकर्ता अवश्य थोड़े निराश होंगे पर उनका मनोबल आप बढ़ा सकते हैं (शायद आपको सबसे पहले यही करना चाहिए)| ज़्यादा बड़ी बात है कि हम इससे क्या सीखते हैं क्योंकि उसी के आधार पे ये निर्धारित होगा कि भारत का भविष्य क्या है|
पिछले कुछ महीनों में हिंदुत्व कि परिभाषा को अनेक नेताओं नो अपने भाषणों में बुरी तरह से चोटिल किया है| यह रूढ़िवादिता जो कभी भी हमारे धर्म का हिस्सा ना थी वही अब सबसे अधिक मुखर है| 'हिंदू परिवारों को चार-पाँच बच्चे करने चाहिए', 'लड़कियों को जीन्स नही पहननी चाहिए' आदि ऐसे बयान है जिनको सुन के हमारे और जिनको हम पराजित करना चाहते है उनके बीच का अंतर ख़त्म सा हो जाता है| मुझे यह कहने में कोई झिझक नही की जिहाद देश के लिए बड़ा ख़तरा है, पर अगर जिहाद को हराते हराते सम खुद ही जेहादी बन गये तो जेहाद जीत जाएगा| मेरा यह निवेदन है कि पार्टी में यह भावना उत्पन्न कर दें कि हिन्दुत्व और जेहाद में बहुत अंतर है और जो लोग इसे नहीं समझ पा रहे उन्हे कृपा करके पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाएँ| नारी सुरक्षा के विषय में हिंदुत्ववादी अधिक परेशान हैं और यह चिंता बेबुनियाद भी नही है| लव जिहाद एक सच्चाई है जिसे निकट से ही समझा जा सकता है, दूर से तस्वीर धुंधली हो जाती है| परंतु इसका यह अर्थ नही की औरतों को घूँघट में ढक दिया जाए और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता छीन ली जाए| यह तो कयर्ता मात्र है| क्या हिंदू अब इतने निर्बल हो गये हैं कि स्त्री रक्षा ना करके स्त्री दमन उन्हे भाने लगा है? अपनी स्त्री को उपर से नीचे तक तो कोई भी ढक सकता है और अधिकतर पुरुष इतने बलशाली भी होते हैं की भय का प्रयोग करके वे अपने घर की स्त्रियों से यह मनवा भी सकते हैं| पर असली वीरता तो इसमे है की वह अपने जीवन में आई हर नारी का आदर करें चाहे वह कैसी भी हो और उसका अपमान करने वाले को सही सबक सीखा दें चाहे ऐसा करने में उनकी जान ही क्यूँ ना चली जाए| अगर आप इस तर्क में यकीन रखते है कि देश के प्रधानमंत्री होने के नाते आप देश बदल सकते हैं तो आप को यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि यह छोटे-मोटे नेताओं के भाषण भी समाज पर अपनी छाप छोड़ते हैं| निवेदन है कि इन्हे हिन्दुत्व और उसके अर्थ को इतनी बड़ी क्षति पहुचाने से रोका जाए| इसी विषय में ढोंगी बाबओं की भी चर्चा करना ज़रूरी है| इनके कारण समाज को बहुत अधिक हानि हो रही है और दुर्बलता का विस्तार हो रहा है| धर्म के नाम पर होने वाली सारी छोटी-बड़ी अंधविश्वासी गतिविधियों पर रोक लगानी होगी तब ही हिंदू धर्म अपने भय से मुक्त हो सकेगा| इसी प्रकार से हम हिन्दुत्व की विजय कर सकते हैं| इसके साथ मैं यह भी कहना चाहूँगा की यद्यपि भ.ज.पा. हमारी स्वाभाविक पार्टी है क्यूंकी हम हिंदुत्ववादी हैं पर इसका यह अर्थ नही की हम हमेशा भ.ज.पा. का ही समर्थन करेंगे चाहे वह ग़लत काम ही क्यूँ ना कर रही हो| लोक सभा चुनावों के कुछ दिन पहेल एक मित्र ने मुझसे प्रश्न किया था कि अगर मोदी भी ग़लत कम करने लगे तो तुम कहाँ जाओगे? मैने उत्तर यही दिया था कि रहूँगा तो मैं भारत में ही पर विरोध अवश्य करूँगा| मुझे खेद है की चुनाव जीतने की इतने कम समय के पश्चात ही मुझे पार्टी कि गतिविधियों के विरोध में लिखना पढ़ रहा है|
मोदिजि, आपसे बहुत आशाएँ हैं| ऐसा कहकर मैं आपको 'इमोशनल ब्लेकमेल' नही कर रहा| मैं आपको यह भर बताना चाहता हूँ की हम आपके साथ हैं| जब दो प्रतिद्वंदी पार्टी के समर्थकों में बहस होती है तो हम यह नही देखते की सही क्या है और ग़लत क्या, हम आपका समर्थन करते हैं| पर बहस समाप्त होने पर हमे अपराध बोध होता है कि एक ग़लत बात का समर्थन कर आए| मनुष्य का अंतर्मन भी कितना सहेगा? मैं आपसे सच सच कहता हूँ कि व्यक्तिगत तौर पे मैं स्त्री पोशाक पर दिए गये कायरतापूर्ण बयान और शाज़िया इलमी को पार्टी में सदस्यता, इन दोनो ही बातों से मैं काफ़ी आहत था| अनेक लोगों से बात करके मालूम पड़ा कि वे भी आहत हैं| आज से कुछ वर्षों के बाद यह बात आपको चौका ना दे इसीलिए मैने यह पत्र लिखा है| मैं आशा करता हूँ कि आप इसे पढ़ेंगे और अपने राजनीतिक कौशल का प्रयोग करके हम सबके चिंता का समाधान करेंगे|
ईश्वर आपको लंबी आयु दे तथा हर व्यथा और दर्द से दूर रखे|
-मयंक पांडे
-भारतवर्ष का एक युवा नागरिक
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